बेवफाई
अधूरे ख्वाब सा तू ने
अंधेरी राह में छोड़ा
बहुत उम्मीद थी तुमसे
मगर तू हाथ न मोड़ा (पकड़ा) ।
मैं रोई थी बहुत फिर भी
तरस तुझको ना आया था
सितमगर तुम बहुत निकले
हदय तब जान पाया था ।
तुम्हारी सोच ओछी थी
तुम्हारा दिल भी छोटा था
तुम्हारी हरकतों से तू ने मेरी
राह रोका था ।
खुशी के पल को छीना था
गमों से मुझको जोड़ा था
तूने तो कुछ भी न छोड़ा
तुम्हारा दिल ही पत्थर था।
तू मेरे सुख से जलता था
तू मेरे दुःख पे हंसता था
वही तूने कमाया है
समक्ष तेरे जो आया है ।
बहुत अभिमान था तुझ को
बहुत ही शान था तुझ को
मगर सब आज है टूटा
तुझ ही से भाग्य भी रुठा ।
हमारे भाग्य से तू ने
बहुत कुछ ही कमाया था
हमारा साथ जो छूटा
तो तेरा भाग्य भी रुठा ।
संजुला सिंह “संजु”
जमशेदपुर