Thursday 16th of October 2025 05:56:43 AM

Breaking News
  • बिहार में NDA का सीट बंटवारा फाइनल , JDU-BJP दोनों 101 सीटो पर लड़ेंगे चुनाव |
  • महिला पत्रकारों के बहिष्कार पर मुत्तकी का तकनीकी खराबी वाला बहाना |
  • AI से आवाज़ की नकल पर कुमार सानू का दिल्ली हाईकोर्ट की ओर रुख |
Facebook Comments
By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 14 May 2024 4:30 PM |   704 views

भारत में गुटखा, पान मसाला, जर्दा या खैनी जैसे तंबाकू उत्पाद स्वास्थ्य के लिहाज से महंगा पड़ सकता है

भारत में गुटखा, पान मसाला, जर्दा या खैनी जैसे तंबाकू उत्पाद स्वास्थ्य के लिहाज से महंगा पड़ सकता है| ये बात हम सभी जानते हैं| लेकिन बावजूद इसके हम देखते हैं कि कई जानी मानी हस्तियां विज्ञापनों के जरिए इनका प्रचार करती हैं| शादी समारोहों में इसका बेहद ज्यादा चलन देखा गया है. लेकिन कुछ शोधकर्ताओं ने एक चेतावनी जारी की है|

खासकर तीन देश भारत, बांगलादेश और पाकिस्तान के लिए. शोधकर्ताओं के मुताबिक अगर फौरी तौर पर नीतियों में बदलाव नहीं किया गया तो भारत को स्वास्थ्य देखभाल पर करीब 158,705 करोड़ रुपए का खर्च उठाना पड़ेगा|

पाकिस्तान पर करीब 25 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा तो वहीं बांग्लादेश में यह आंकड़ा 12,530 करोड़ रुपए के आसपास रह सकता है| यह जानकारी भारत के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर प्रिवेंशन एंड रिसर्च, मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज और सेंटर फॉर हेल्थ इनोवेशन एंड पॉलिसी फाउंडेशन से जुड़े शोधकर्ताओं के सहयोग से किए अध्ययन में सामने आई है|

इस अध्ययन में भारत के साथ-साथ, पाकिस्तान, बांग्लादेश, और यूके के अलग अलग संस्थानों से जुड़े रिसर्चर्स ने भी भूमिका निभाई है| रिसर्च के परिणाम ऑक्सफोर्ड एकेडमिक के निकोटीन एंड टोबैको रिसर्च जर्नल में पब्लिश हुई है|

इन देशों में यह धुआं रहित तम्बाकू उत्पाद सेवन करने वालों के लोगों के स्वास्थ्य पर कैसा असर पड़ता है इसका पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने वयस्क आबादी को 15-19 वर्ष से लेकर 70-74 तक के पांच-पांच वर्ष के आयु समूहों में बांटा है. उन्होंने फिर उम्र, लिंग के आधार पर महिलाओं और परूषों को अलग किया. एक मॉडल का इस्तेमाल कर ये पाया कि हर साल, कुछ लोग इसका सेवन बंद कर देंगे, कुछ जारी रखेंगे. कुछ लोग जिन्होंने इसका सेवन बंद कर दिया था, वे इसे फिर से शुरू कर देंगे.

कुछ लोग इसे पहली बार उपयोग करना शुरू करेंगे. वहीं दुर्भाग्य से कुछ लोगों की मृत्यु भी होगी| रिसर्च में ये भी कहा गया कि हर एक समूह के लोगों के जीवन में अलग-अलग समय पर कैंसर और स्ट्रोक कितने आम होंगे और इन बीमारियों के इलाज पर कितना खर्च आएगा|

इस आधार पर शोधकर्ताओं ने यह गणना की है कि अगर भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान, लोगों को धुआं रहित तंबाकू का उपयोग करने से रोकने के लिए नीतियां बनाते हैं तो स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च होने वाली लागत में कितनी कटौती की जा सकेगी|

जैसा कि हमने बताया कि दक्षिण एशिया में खैनी, गुटखा, जर्दा और पान मसाला जैसे तंबाकू उत्पाद काफी लोकप्रिय है| जहां करीब 30 करोड़ लोग इनका सेवन करते हैं| इनके इस्तेमाल में हो रही बढ़ोतरी के पीछे सबसे बड़ी वजह लोगों का ये मानना कि ये बीड़ी, सिगरेट की तुलना में ज्यादा सुरक्षित हैं| लेकिन इनकी वजह से न केवल स्वास्थ्य बल्कि अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा है|

अध्ययन से ये भी पता चला है कि सभी देशों में स्वास्थ्य देखभाल पर जो लागत आएगी वो कम उम्र के लोगों के लिए सबसे ज्यादा हो सकती है| भारत में 35 से 39 आयु वर्ग के पुरुषों के स्वास्थ्य देखभाल पर सबसे ज्यादा खर्च आएगा| वहीं बांग्लादेश में यह 30 से 44 आयु वर्ग और पाकिस्तान में, 20 से 24 और 30-34 आयु वर्ग के लोगों के लिए रहने की आशंका है|

इसी साल 2024 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपनी नई रिपोर्ट ग्लोबल रिपोर्ट ऑन ट्रेंड्स इन प्रीवलेंस ऑफ टोबैको यूज 2000-2030 में जानकारी दी थी कि भारत सहित दुनिया भर में तम्बाकू का सेवन करने वालों की संख्या में कमी आई है| हालांकि इसके बावजूद देश में अभी भी 25.1 करोड़ से ज्यादा लोग इसका सेवन कर रहे हैं। इनमें से 79 फीसदी पुरुष जबकि 21 फीसदी महिलाएं शामिल हैं, यह वो लोग हैं जिनकी आयु 15 वर्ष या उससे अधिक है|

अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर रवि मेहरोत्रा ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि सिर्फ इन उत्पादों पर कर बढ़ाने से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि ये उत्पाद सस्ते हैं और संस्कृति में गहराई से रचे-बसे हैं| नशा एक ऐसी लत है जिसे छोड़ने के लिए इसका सेवन करने वालों को को भी मदद की जरूरत पड़ेगी|

शोधकर्ताओं के मुताबिक युवाओं के धूम्रपान शुरू करने से रोकने पर ध्यान केंद्रित करना उनके लिए सबसे अच्छा काम कर सकता है, जबकि मध्यम आयु वर्ग के लोगों को धूम्रपान छोड़ने में मदद करना उनके लिए सबसे प्रभावी हो सकता है|

Facebook Comments