“संस्कृति एवं भारतीयता’ विषय पर व्याख्यान संपन्न

इस सत्र के मुख्य अतिथि महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो० हरीश कुमार रहे। उन्होने कहा कि संस्कृति को एक समूह की जीवन, सोच और अनुभओं और उनको संगठित करें। जीवन को बाटने और उत्सव मनाने के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
मुख्य वक्ता के रूप में डॉ० जनार्दन झा ने कहा कि संस्कृति संचयी अवधारणा है। संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्यस्त गुणों के समग्र स्वरूप का नाम है जो इस समाज के सोचने विचारने कार्य करने के स्वरूप में अर्न्तनिहित होता है । यह ‘कृ’ धातु से बना हुआ है, जिसका अर्झ होता है करना।
कार्यक्रम अधिकारी डॉ० योगेन्द्र सिंह ने कहा कि संस्कृति को किसी आबादी की कलाओं, मान्यताओं औश्र संस्थाओं सहित जीवन सभी तरीकों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। संस्कृति को जीवन जीने का तरीका कहा गया है।
इस अवसर पर शिविरार्थी एवं सभी प्राध्यापक डॉ० कमला यादव, डॉ० अभिषेक कुमार उपस्थित
रहें।
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