नव नालन्दा महाविहार में वसंतोत्सव आयोजित

उन्होंने कहा कि वसंत को शास्त्र में संवत्सर का मुख, मधु मास कहा गया है। प्रेम की वृद्धि, होलिकोत्सव व वसंत पंचमी इसके प्रमुख आयाम हैं। वसंत सहस्राब्दियों से है। कामदेव व रति: प्रेम के प्रमुख माने जाते हैं। वसंत प्रकृति व मानव का सुंदर संयोग है। नई आशा व कामना है।
श्री पंचमी वसंत पंचमी हो गई। सरस्वती कला व विद्या की देवी हैं। साहित्य में वसंत की अनेक छवियाँ हैं। संस्कृत कवियों , विशेषकर कालिदास के साहित्य में वसंत का सुंदर चित्रण है। ‘ द्रुमा सपुष्पा…’। सरस्वती का विस्तार ही वसंत है।
अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में कुलपति प्रो. वैद्यनाथ लाभ ने कहा कि वसंत आनंद का उत्सव है। वसंत एक आत्यंतिक जीवंतता है, मानुषिक एवं प्रकृतिगत सौंदर्य है। यह शीत व ग्रीष्म के मध्य संधि-पत्र है। संस्कृत साहित्य के वसंत लालित्य को नई पीढ़ी द्वारा पढ़ा जाना चाहिए। मूल में पढ़ें या अनुवाद में : दोनों ही आनंद प्रदान करते हैं।
अपने उद् बोधन में संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. विजय कुमार कर्ण ने कहा कि वसंत ऋतु हमारे मन का उल्लास है। वसंत हर किसी के भीतर की आशा है। सरस्वती हमें दृष्टि संपन्न बनाती हैं।
संचालन व संयोजन संस्कृत उपाचार्य डॉ. नरेंद्र दत्त तिवारी ने किया। उन्होंने वसंत की आभा की अनुभूति की बात उठाई।
धन्यवाद- ज्ञापन में संस्कृत के सहायक आचार्य डॉ. राजेश मिश्र ने कहा कि वसंत हमको चारुतर बनाता है। कार्यक्रम के आरम्भ में भंते डॉ. धम्म ज्योति तथा नेहा आर्या ने मंगल पाठ किया।
कार्यक्रम में नव नालन्दा महाविहार सम विश्वविद्यालय के आचार्य, छात्र- शोधछात्र , गैर शैक्षणिक समुदाय के जन उपस्थित थे।
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