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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 9 Jan 2023 6:07 PM |   762 views

बौद्ध ध्वज

बौद्ध धम्म ध्वज मात्र पाँच रंगों का एक पताका मात्र नहीं है। बल्कि यह सम्पूर्ण जगत में जीव मात्र के कल्याणार्थ फहरता एक प्रतीक है। इसके अतिरेक ध्वज का प्रयोग प्राचीन परम्परा से होता आ रहा है, ध्वज हमेशा ही प्रतीक, गौरव, ऊर्जा तथा अभिमान आदि के लिए प्रयुक्त हुआ। ध्वज का प्रयोग राजकीय, सांस्कृतिक, वैचारिक, धार्मिक, राष्ट्रीय तथा राजनैतिक आदि परिप्रेक्षों में प्रयोग होता आ रहा है। 
 
इसी प्रकार से जब बौद्ध धम्म वैश्विक पटल पर आरूढ़ हो रहा था, तब एक धम्म ध्वज की आवश्यकता महसूस की गई। चूंकि उस समय बौद्ध धम्म वैश्विक पटल पर साहित्य तथा अन्य रूपों से जन -मानस में विद्यमान था परन्तु उसका स्वयं का अपना ध्वज की निर्मिति नहीं हुई थी ।
 
इस बारे में सिंहल देश में एक समिति द्वारा तथागत बुद्ध के शरीर की रश्मि आभा के रंगों आदि को ध्यान में रखते हुए एक ध्वज का निर्माण हुआ। इसकी तिथि को लेकर अभी तक अनिश्चितता है परन्तु Mr J.R. de Silva and Colonel Henry S. Olcot द्वारा इसका प्रारूप सन (1880) 1885 में मई माह के पूर्व ही तैयार किया गया था।
 
ऐसा इसलिए कि इसकी निर्मित के बाद वैशाख पूर्णिमा (28मई) को थेर मित्तीगुत्ते गुणानन्द द्वारा फहराया गया था। अन्तिमतः विश्व बौद्ध परिषद् द्वारा 1950 में अन्तरराष्ट्रीय बौद्ध धम्म ध्वज द्वारा स्वीकर कर लिया गया। 
 
जो कि इस प्रकार हैं-
इस ध्वज की क्षैतिज धारियां सद्भाव में रहने वाले वैश्विक लोगों का, खड़ी पट्टियां शाश्वत विश्व शांति का, रंग बुद्धत्व और धर्म की पूर्णता का तथा रंग संयोजन बुद्ध की शिक्षा के सत्य का प्रतीक हैं। इस ध्वज में छः रंग होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
 
1. नीला (नील) – भगवान बुद्ध के बालों और आंखों से भरी नीली रोशनी जो सभी प्राणियों के लिए सार्वभौमिक करूणा की भावना का प्रतीक है। ध्वज वन्दना में कहा गया है –
 
वजिर संघात कायस्स अंगोरसस्स तादिनो।
केसमस्सहि अक्खीनं नीलट्ठानेहि रंसियो। 
नीलवण्णानिच्छरन्ति अनन्तकास भूदके ।।
 
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध के सिर और दाड़ी के बालों एवं आँखों के नील स्थानों से प्रभावित होने वाले नीले रंग से समुद्र, धरती और आकाश व्यापित हो रहे हैं।
 
2. पीला (पीत) – भगवान बुद्ध के बह्यत्वचा से तेज़ जो कि बुद्ध के बाह्यत्वचा का प्रतीक होता है वह सबसे दूर से बचता है और संतुलन और मुक्ति लाता है। ध्वज वन्दना में कहा गया है –
 
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो। 
छवितोचव अक्खीनं, पीतट्ठानेहि रंसियो। 
पीतवण्णा निच्छरन्ति अनन्तकास भूदके ॥
 
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध की पीले रंग के त्वचा से और आँखों के पीले स्थानों से प्रभावित होने वाले पीले रंग से समुद्र, धरती और आकाश व्यापित हो रहे हैं।
 
3. लाल (लोहित) – बुद्ध के मांस से भरी यह लाल रोशनी का प्रतीक है जो बुद्ध की शिक्षा का अभ्यास करता है। ध्वज वन्दना में कहा गया है –
 
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो। 
मंस लोहित अक्खीनं, पीतट्ठानेहि रंसियो । 
लोहितवण्णा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदके ।।
 
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध के पास में आँखों में जो रक्त स्थानों से प्रभावित होने वाले लाल रंग से समुद्र, धरती और आकाश व्यापित हो रहे हैं।
 
4. श्वेत (ओदात) – बुद्ध की हड्डियाँ और दाँतों से भरी सफेद रोशनी का प्रतीक बुद्ध की शिक्षा और मुक़्ति का प्रतीक होता है। ध्वज वन्दना में कहा गया है –
 
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो । 
अट्ठि दन्तेहि अक्खीनं, सेतट्ठानेहि रंसियो। 
सेतवण्णा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदके ।।
 
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध के दाँत से, अस्थियों से और आंखों में जो सफेद स्थानों से प्रभावित होने वाले सफेद रंग से समुद्र, भूमि और आकाश व्यापित हो रहे हैं।
 
5. मंजीठ (मंजेट्ठ) – बुद्ध के वृक्षों, हील्स और होंठों की अविचल रोशनी जो बुद्ध की शिक्षा के अविचल ज्ञान का प्रतीक है। ध्वज वन्दना में कहा गया है –
 
वजिर संघात कायस्स, अंगीरसस्स तादिनो।
तेसं-तेसं सरीरानं, नानाट्ठानेहि रंसियो। 
मज्जिट्ठका निच्छरन्ति अनन्ताकास भूदके ॥5॥
 
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध के अलग-अलग अवयवों से प्रभावित होने वाला मंजीठ या बादामी रंग से समुद्र, भूमि और आकाश व्यापित हो रहे हैं।
 
6. प्रभास्वर (चमकदार) – भगवान बुद्ध के शरीर के पांच रंगों के सम्मिश्रण से उत्पन्न तेज को ही प्रभास्वर रंग के रूप में गिना जाता है। ध्वज वन्दना में कहा गया है –
 
वजिर संघात कायस्स अंगीरसस्स तादिनो। 
तेसं-तेसं सरीरानं, नानाट्ठानेहि रंसियो ।
पभस्सरा निच्छरन्ति, अनन्ताकास भूदके ॥
 
अर्थात वज्र के समान अभेद्य देह धारण करने वाले भगवान बुद्ध के सभी अंगों से ऊपर कहे पाँच रंगों के सम्मिश्रण से उत्पन्न प्रखर के तेजस्वीपन के प्रभाव से समुद्र, धरती और आकाश व्यापित हो रहे हैं।
 
इन छः रंगों से परिपूर्ण यह धम्म ध्वज सदैव स्तुतियोग्य है, वंदना करने योग्य है। ध्वज वन्दना में कहा गया है।
 
।। बुद्धानु सासनं चिरं तिट्ठतु ।। अर्थात् बुद्ध सासन चिरकाल के लिए स्थायी हो।
 
– डॉ भिक्षु नंदरतन कुशीनगर
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