आशाएं
विपदा की घनघोर घटाएं
संशित आशाओं के पथ पर
व्याकुल मन की मूक व्यथाएँ
कंटक से लिपटी सब राहें
आशा की प्रतिकूल प्रवाहें
स्थैर्य-धैर्य के कोमल मन पर
पर्वत की ऊंची मालाएं
और गहन वन की शाखाएं
तम से तर अव्यक्त निशाएँ
विश्वासों के दीप बुझाती
घोर प्रभंजन प्रबल हवाएं
किन्तु उसी अंधियारे पथ पर
आशाओं की ज्योति जलाए
निकल पड़ा एकाकी मन जो
तोड़ परिस्थिति की सीमाएं
भेद अखंडित घोर तिमिर को
काट गहन उत्ताप शिशिर को
नई उषा ने अब जो पाया
नव विहान पर आज मिहिर को
गिरती उठती उद्दाम लहर
तम से उभरे रक्ताभ पहर
गह्वर के बन्धन तोड़ आज
चल पड़े किसी अंजान डगर
चिन्ता का भार उतार चले
हाथों में ले पतवार चले
भय तूफानों का तोड़ आज
इस पार से अब उस पार चले
तम का धूमिल आगार धुला
एक नव विहान का द्वार खुला
चिर मुस्कानों के सौरभ में
आशा का रंग अपार घुला
जब भाव सहज निश्छलहोगा
जो आज नहीं है,कल होगा
तब सार्थक,सुन्दर सत्य लिए
आने वाला हर पल होगा
-वंदना
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