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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 15 Sep 12:55 PM |   474 views

धान मे बाली निकलते समय कण्डुआ रोग से बचने पर ध्यान दें

आचार्य नरेन्द्र देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्वविद्यालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा   संचालित कृषि विज्ञान केन्द्र केन्द्र  सोहाँव बलिया के अध्यक्ष  डा.  रवि प्रकाश मौर्य   प्रोफेसर( कृषि कीट विज्ञान) ने धान की खेती करने वाले किसानों को अभी से कण्डुआ रोग से सावधान रहने की सलाह है।
 
उन्होंने बताया कि  पौधे से बाली निकलने के समय धान पर कंडुआ रोग का असर बढ़ने लगता  है।  इस रोग के कारण धान के उत्पादन पर असर पड़ने की संभावना बनी रहती  है। धान की बालियों पर होने वाले इस  रोग को आम बोलचाल की भाषा में लेढ़ा रोग , गंडुआ रोग , बाली का पीला रोग / हल्दी रोग से किसान जानते है।
 
वैसे अंग्रेजी में इस रोग को फाल्स स्मट और हिन्दी में मिथ्या कंडुआ रोग के नाम से जाना जाता है।  यह रोग अक्तूबर माह के मध्य से नवंबर तक धान की अधिक उपज देने वाली प्रजातियों  में आता है। परन्तु मौसम मे बदलाव के कारण पूर्वाच्चल  के कई जनपदों मे सितंबर  से यह रोग बालियों मे दिखाई देने  लगता  है।   जब वातावरण में काफी नमी होती है, तब इस रोग का प्रकोप अधिक होता है। धान की बालियों के निकलने पर इस रोग का लक्षण दिखाईं देने लगता है।रोग ग्रसित धान का चावल खाने पर स्वास्थ्य पर असर  पड़ता है  प्रभावित दानों के अंदर रोगजनक फफूंद अंडाशय को एक बडे़ कटुरुप में बदल देता है। बाद में जैतुनी हरे रंग के हो जाते है। इस रोग के प्रकोप से दाने कम बनते है और उपज में दस से पच्चीस प्रतिशत की कमी आ जाती है।यूरिया की मात्रा आवश्यकता से अधिक न डाले। मिथ्या कंडुआ रोग से बचने हेतु नियमित खेत की निगरानी करते रहे।एक दो पौधो की बाली में रोग दिखाई देने पर पौधो को उखाड़ कर जला दे।
 
इसके बाद  तुरन्त कार्बेन्डाजिम 50डब्लू. पी. 200 ग्राम अथवा प्रोपिकोनाजोल-25 डब्ल्यू़ पी़ 200 ग्राम को  200 लीटर पानी मे घोल कर  प्रति एकड़ की दर से छिड़काव  करने से रोग से मुक्ति मिलेगी। बहुत ज्यादा रोग फैल गया हो तो   रसायन का छिड़काव न करें।  कोई फायदा नही होगा। रोग ग्रस्त  बीज को अगली बार  प्रयोग न करे।
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