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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 27 Feb 2021 7:28 PM |   550 views

बसंत

जन जन के मन में जगे,नये सृजन की आस
ली अंगड़ाई प्रकृति ने, आया है मधुमास।
 
पर्ण पुरातन की जगह,नव किसलय का रूप
आभा कंचन सी लगे,पड़ती जब है धूप।
 
खग कुल कलरव से हुआ,गुंजित अपना बाग
द्रुमों की शाख शाख पे, सुमन खेलते फाग।
 
पवन लगे इक बांसुरी,उसका अपना राग
हरे भरे सब खेत हैं,बिहंसे बाग तड़ाग।
 
पंकज सा मन खिल उठे,नैन हुए बेचैन
मस्ती में सब झूमते,दिन हो चाहे रैन।
 
मस्ती लेकर आ गया, है ऋतुराज बसंत
है रौनक चेहरों पर, गृहस्थ चाहे संत।
 
झुरमुट से है झांकता,आम्र वृक्ष का बौर
महुआ का कोंचा लगे, जैसे सिर पे मौर।
 
जौ गेंहू की बालियां,झुक कर करें सलाम
सुमन पीत सरसों जहां,मादक गंध ललाम।
 
करतीं आकर्षित अलि को, कलियों की मुस्कान
तितलियां भी भूल ग‌ईं,अपनी मस्त उड़ान।
 
घायल हैं करने लगे, काजल वाले नैन
भले कोई कलकत्ता, वो रहतीं उज्जैन।
 
                                 डॉ भोला प्रसाद ,आग्नेय
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