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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 11 Jun 3:44 PM |   4066 views

अधिक आय के लिए सूरन की खेती करे किसान

देवरिया – अधिक आय के लिए जिमीकंद, सूरन या ओल की खेती नकदी फसल के रूप में महाराष्ट्र, बिहार, गुजरात, पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश में बहुतायत से की जाती है। जीवांशयुक्त बलुई दोमट मिट्टी जिसकी जल धारण क्षमता अधिक हो परन्तु जल ठहराव न हो  सूरन की खेती के लिए उपयुक्त होती है । यह छायाप्रिय फसल है अतः कम घने बगीचे में भी इसकी फसल उगाई जा सकती है ।
 
सूरन की खेती के सम्बन्ध में कृषि विज्ञानं केंद्र के प्रभारी रजनीश श्रीवास्तव ने बताया कि जिमीकंद की गजेन्द्र प्रजाति भारत के सभी भागो में खेती के लिए उपयुक्त हैSA इसके पौधे 1.0-2.0 मीटर लम्बे होते है । कन्दो का आकार बड़ा एवं गोल होता है । कैल्शियम आक्जलेट की मात्रा कम होने के कारण गले में उद्दीपन नहीं होता है ।
 
उन्होंने बताया कि मई का दूसरा पखवाड़ा से जून का दूसरा पखवाड़ा  (मानसून से पहले) उपयुक्त समय है । सिंचाई की सुविधा होने पर फरवरी-मार्च में भी बुवाई  किया जा सकता है । सूरन की बुवाई 90 X 90 सेमी (3 X 3 फीट ) की दूरी पर 30X30 सेमी आकार के गढ्ढे में 500-1000 ग्राम के पूर्ण या कटे हुए कन्दो की बुआई की जाती है ।इस प्रकार प्रति हेक्टेयर बुवाई के लिए  50-60 कुन्तल कंद की  आवश्यकता होती है । इसके लिए 20-25 टन गोबर की खाद, नत्रजन 150 किग्रा, फास्फोरस 60 किग्रा एवं पोटाश 150 किग्रा प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है ।
 
जुताई के एक माह पहले गोबर की खाद को खाद की पूरी मात्रा खेत में बिखेर कर जुताई करनी चाहिए, तत्पश्चात अंतिम जुताई के समय नत्रजन की पूरी मात्रा एवं फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत में मिला देनी चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को तीन भागों में बांटकर 30, 60 एवं 90 दिनों बाद खड़ी फसल में देना चाहिए। आमतौर पर सुरन में कोई कीट या बीमारी नहीं लगता है कभी कभी पौधों के जड़ के पास गलन (कालर राट) बीमारी लगाती है | प्रकोप होने पर जड़ के पास टेबिकोनाज़ोल नामक दवा का 2 मिली मात्रा 1 लीटर पानी के साथ मिलाकर जड़ के पास छिडकाव करे मिट्टी को भिगो दे |
 
सुरन की खेती कर किसान 100-125 कुन्तल प्रति एकड़ उपज प्राप्त करते है | इस प्रकार अनुमानत रु0 100000 से 125000.00 खर्च करके 8-10 माह में 300000 से  350000.00 रुपये तक का आय प्राप्त कर सकते है |
 
( रजनीश श्रीवास्तव, प्रभारी, कृषि विज्ञान केंद्र, मल्हना, देवरिया ) 
 
 
 
 
 
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