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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 8 Jun 2020 3:07 PM |   542 views

मंगलाचरण जिन्दगी का

शुरू करते ही मंगलाचरण जिन्दगी का 

किया दुशासन ने चीरहरण जिन्दगी का 

खो गया था मै तो इंसानों की भीड़ में 

पढा दिया पशुओं ने व्याकरण जिन्दगी का 

सफेदी बाल की देखकर सोचा मैंने 

कब तलक होगा अब जागरण जिन्दगी का 

साए से भी अपने डर लगने लगता है 

भ्रष्ट हो जायेगा जब आचरण जिन्दगी का 

दाग दामन पर लग जाता चाहे जैसे भी 

नहीं हो पाता नवीनीकरण जिन्दगी का 

गम जलाने के लिए आग को पीना नही 

वरना शुरू हो जायेगा क्षरण जिन्दगी का 

पढ़ लेता पन्ने पलट कर बीते हुए पल 

काश !होता कागज़ पर मुद्रण जिन्दगी का 

सजा दो हरेक लम्हे मुस्कुराहटों से 

होता है महज एक संस्करण जिन्दगी का 

करतें हैं आज हर मोड़ पर ‘ आग्नेय ‘

अपने आप ही अपहरण जिन्दगी का 

( डॉ भोला प्रसाद ‘ आग्नेय ‘ बलिया ) 

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