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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 23 Jan 2022 6:09 PM |   882 views

दल- बदल का दलदल ( व्यंग्य )

चुनाव करीब आते ही अपना लाभ देखते हुए नेता लोग अपनी पार्टी बदलते रहते हैं| ऐसी पार्टी को भी छोड़ देते हैं जिसमें पांच साल तक मंत्री रह कर चांदी काट चुके हैं फिर भी कहीं दूसरी पार्टी में अधिक लाभ दिखाई देता है तो दल बदल लेते हैं| ऐसे भी अवसरवादी नेता है जो कभी बसपा में हाथी का चरण रज अपने माथे पर लगाते रहे चांदी काटते रहे और पिछले चुनाव में भाजपा की हवा दिखाई दिया तो बसपा छोड़ भाजपा में आ गये मंत्री बन कर पांच साल तक चांदी काटते रहे और चुनाव करीब आते ही हवा का रुख सपा के पक्ष में दिखाई दिया तो सपा ज्वाइन कर लिया| वैसे चुनाव परिणाम तो भविष्य के गर्भ में है|
 
ऐसे सभी दल बदलू नेताओं के पास प्रशंसा और गालियों के शब्द रेडीमेड रहते हैं| जब तक पार्टी में रहते हैं तो रेडीमेड तारीफ के कसीदे पार्टी के पक्ष में पढ़ते हैं और शेष पार्टी के लिए रेडीमेड गालियों के शब्दों का प्रयोग बखूबी करते रहते हैं| जब पार्टी छोड़ते हैं तो प्रशंसा और गाली के शब्द वही रहते हैं केवल पार्टी का नाम बदलकर बोलने लगते हैं| कल तक जहाँ थे वहाँ आज से दलितों, पिछड़ों, मजदूरों और किसानों का अपमान दिखाई देने लगता है जबकि कल तक वहाँ सम्मान दिखाई दे रहा था| जबकि हकीकत यह है कि इनको न तो दलितों पिछड़ों से मतलब है न किसानों मजदूरों से मतलब है. इनको मतलब है तो केवल चांदी काटने से मतलब है और अपने साथ साथ अपने परिवार को राजनीति में स्थापित करने से मतलब है | दलितों पिछड़ों की बात कह कर पार्टी छोड़ना ठीक उस कहावत की तरह है कि ” पत्नी छोड़ना था तो कहने लगे कि साग में हल्दी क्यों नहीं डाला.” कहने का तात्पर्य है कि इन दल बदलुओं के कारण हमारे गणतंत्र की यथोचित छवि उभर नहीं पा रही है क्योंकि—-
 
दल बदल के दलदल में, फॅसा हुआ गणतंत्र
    है नेताओं के लिए, चांदी काटो मंत्र
 
इसीलिए तो मौर्य ने दस साल बसपा में, पांच साल भाजपा में चांदी काटकर अब सपा में आए हैं|अब देखना है कि यहाँ चांदी काटने को मिलेगा या धूल चाटने को मिलेगा क्योंकि इसका आभास सपा को कुछ हद तक हो चुका है  इसीलिए सपा ने नया फार्मूला तैयार किया है|वह फार्मूला यह है कि बेटे रहें सपा में और बहुएं रहें भाजपा में ताकि कोई जीते वाह- वाह| अगर सपा जीते तो बेटे के हाथों चांदी करवाएंगे और यदि भाजपा जीते तो बहू के हाथों चांदी करवाएगें| कहने का मतलब कि चित भी अपना और पट भी अपना| 
 
इसलिए संविधान निर्माताओं को कोटिशः धन्यवाद इस बात के लिए कि संविधान ऐसा बनाया है कि दल- बदल का दलदल कायम रहे और हम सभी उसी में फंसे रहें|
 
  डाॅ0 भोला प्रसाद आग्नेय , बलिया 
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