खिचड़ी दोहावली
मकर राशि के गेह में, रवि ने किया प्रवेश बहुत याद आया हमें, अपना गाँव प्रदेश गन्ने से बनते हुए, गुड़ की सोंधी गन्ध और
मकर राशि के गेह में, रवि ने किया प्रवेश बहुत याद आया हमें, अपना गाँव प्रदेश गन्ने से बनते हुए, गुड़ की सोंधी गन्ध और
घर का स्वाभिमान होती है बेटियाँ पिता का गुमान होती है बेटियाँ जिस घर में जन्म वही छोड जाती बेटो से ज्यादा धैर्यवान होती है बेटियाँ घर की लक्ष्मी होती
तुझे देखके बदला नज़ारा अब तू ही मेरा सहारा की सुध बुध भुल गया में। माही मेरा सबसे है प्यारा हर अदा पे हैं जीवन वारा की
नया वर्ष हो मंगलमय आप सबका मधुमय पवन में चमन झूमता है यशगान का परचम लहरे हमेशा आज पाताल धरती गगन झूमता है खुशियों से पूरा चमन झूमता है सुरभित
साल पुरान बिदा करके अब नूतन रूप लिए फिर आया नाचत गावत स्वागत में हमने खुशियाँ हर साल मनाया लेकिन रोवत गावत साल बितावत नैनन पोछ न पाया मूर्ख बने
ये उदास लम्हे मेरे फिर से खिल जाते दिन जो ,वर्ष के समान बीत रहे हैं यू नही बीतते कटते अगर तुम आ जाते। ठंडी की ये शामे याद तुम्हारी
दूर दूर शहर, नगर देश दुनिया की खबर हमें मिल जाता है जब सुबह अखबार वाला हमारे हाथ में पेपर देकर जाता है। समाचार पत्रों में अनेक अंजान खबरो से
गेंदा, गुलाब, जूही, चंपा- चमेली परिजात, रातरानी, रजनी – सुबेली बनाकर माला महामानव को पहिनाएं, श्रद्धा सुमन हम चढ़ाएं अपमान का जहर पीके, अमृत दिया हमको जीवन में बदलाव स्वाभिमान
शरद ऋतु आपन रंग देखावे लागल गीत द्वारे द्वारे आ के गावे लागल पानी सिकुड़ल नदियन के चमक नया भइल रहल बादल उतपाती कहीं हेरा गइल गॅवे गॅवे जब डेग
यादों के समन्दर में डुबाती हैं तन्हाईयां ख्वाबों को सितारों से सजाती हैं तन्हाईयां प्रतिकूल फिज़ाओं के बादलों की बरसात से तरबतर भींगने से भी बचाती हैं तन्हाईयां शहर
यादों के समन्दर में डुबाती हैं तन्हाईयां ख्वाबों को सितारों से सजाती हैं तन्हाईयां प्रतिकूल फिज़ाओं के बादलों की बरसात से तरबतर भींगने से भी बचाती हैं तन्हाईयां शहर