माटी की मूरत
या ईश्वर का कोई करिश्मा
कहीं सब कुछ हूँ मै
और कहीं कुछ भी नही
जुए के पासे पर भी लगी
अग्नि परीक्षा भी हुई
किसी की आस बनी
किसी की प्यास भी हूँ
कहीं सब कुछ भी नही
माना की कई रूप हैं मेरे
आप जिस नज़र से देखो
वही हूँ मै
आप देखने का नजरिया तो बदलो
मुझे भी अपना अधिकार तो दो
सब कुछ तो नही
पर बहुत कुछ हूँ मै
मुझे अपनी पहचान तो दो
मै माटी की मूरत हूँ
या ईश्वर का करिश्मा
(हेमलता सिंह ,बलिया )
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