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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 23 Jul 2021 5:58 PM |   290 views

चन्द्रशेखर आजाद एवं स्वतंत्रता आन्दोलन विषय पर आधारित आनलाइन छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया

गोरखपुर -राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर (संस्कृति विभाग, उ0प्र0) द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव एवं चौरी- चौरा शताब्दी वर्ष के अन्तर्गत अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद के जयन्ती के अवसर पर आज  चन्द्रशेखर आजाद एवं स्वतंत्रता आन्दोलन विषय पर आधारित आनलाइन छायाचित्र प्रदर्शनी का आयोजन किया गया।

कोविड-19 महामारी अर्थात कोरोना काल में संग्रहालय दर्शकों के लिए प्रतिबन्धित होने के कारण जनसामान्य को संक्रमण से सुरक्षित रखने के दृष्टिगत उक्त प्रदर्शनी का आयोजन आनलाइन किया गया।

जिसे सोशल मीडिया ट्यूटर, संग्रहालय के यू ट्यूब चैनल, फेसबुक, व्हाट्स एप्प एवं लिंकडिन आदि के माध्यम से अवलोकन किया जा सकता है। प्रदर्शनी का आनलाइन आयोजन इस उद्देश्य से किया गया है कि अपने घर बैठे लोग उक्त आयोजन से लाभान्वित हो सके।

चन्द्रशेखर आजाद (23 जुलाई, 1906- 27 फरवरी, 1931) शहीद राम प्रसाद बिस्मिल व शहीद भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के साथ भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानी थे। असहयोग आन्दोलन के दौरान फरवरी 1922 में चौरी-चौरा  की घटना के पश्चात् जब गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आजाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया और पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल, योगेशचन्द्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया। चन्द्रशेखर आजाद भी इस दल में शामिल हो गये।

इस संस्था के माध्यम से राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् 1927 में बिस्मिल के साथ 4 प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया।

दिल्ली पहुँच कर चन्द्रशेखर आजाद के ही सफल नेतृत्व में भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, 1929 को दिल्ली की केन्द्रीय असेंबली में बम विस्फोट किया। यह विस्फोट किसी को भी नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं किया गया था। विस्फोट अंग्रेज सरकार द्वारा बनाए गए काले कानूनों के विरोध में किया गया था। इस काण्ड के फलस्वरूप क्रान्तिकारी बहुत जनप्रिय हो गए। आजाद एक अचूक निशानेबाज भी थे।

वे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भेष बदल-बदल कर देश के तमाम हिस्सों में क्रान्तिकारी गतिविधियों को अंजाम दिये। ऐसा भी कहा जाता हैं कि चन्द्रशेखर आजाद को पहचानने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने 700 लोगों को नौकरी पर रखा था।
इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने साथियों के साथ मंत्रणा कर रहे चन्द्रशेखर आजाद  27 फरवरी को अंग्रेज पुलिस की भयंकर गोलीबारी में वीरगति को प्राप्त हुए। यह दुखद घटना हमेशा के लिये इतिहास में दर्ज हो गयी।

चन्द्रशेखर आजाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारम्भ किया गया आन्दोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े और 15 अगस्त सन् 1947 को भारत आजाद हो गया।

उक्त प्रदर्शनी में चन्द्रशेखर आजाद के जीवन संघर्षों के छायाचित्र सहित स्वतंत्रता आन्दोलन के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं के छायाचित्र का अवलोकन किया जा सकता है। इस प्रदर्शनी का मूल उद्देश्य आजादी का अमृत महोत्सव एवं चौरी चौरा शताब्दी वर्ष के अन्तर्गत अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए शहीद रणबांकुरों की शहादत को नमन करते हुए नई पीढ़ी के युवाओं में देशप्रेम की भावना से ओत-प्रोत करना व स्वतंत्रता को अक्षुण्ण बनाये रखने का जज्बा पैदा करना है।  

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