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By : Kripa Shankar | Published Date : 1 Jul 2021 6:27 PM |   808 views

छत्रपति शाहू जी महाराज

शाहूजी महाराज मराठा सम्राट और छत्रपति संभाजी महाराज के बेटे थे |इनका जन्म 26 जून सन 1874 को मांगो, सतारा,महाराष्ट्र में हुआ था । राज्याभिषेक 12 जनवरी 1908 सतारा में हुआ था। मराठा के भोंसले राजवंश के राजा छत्रपति शाहूजी महाराज का  विवाह बड़ौदा के मराठा सरदार  खानवीकर की बेटी लक्ष्मी बाई से हुआ था। उनके दो बेटे और दो बेटियां थीं। साहू जी महराज का शासन काल 1900  से 1922 तक था।

जब शाहू जी महाराज बाल्यावस्था में थे तभी उनकी माता राधाबाई का निधन हो गया। बचपन का नाम यशवंतराव था । वे छत्र पति शाहूजी महाराज के नाम से भी जाने जाते हैं । मृत्यु का समय  6,, मई  1922 है।

छत्रपति शाहू ने 28 वर्षों तक कोल्हापुर के सिंहासन पर आरूढ़  रहे और इस दौरान उन्होंने अपने साम्राज्य में कई सामाजिक सुधारों की शुरुआत की । तत्कालीन महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले द्वारा किए जा रहे सामाजिक  योगदान से  प्रभावित साहू जी महाराज एक आदर्श नेता और सक्षम शासक थे और फूले द्वारा  गठित संस्था ” सत्य शोधक समाज” का लंबे समय तक संरक्षक रहे।  अपने शासन काल के दौरान कई प्रगति शील और  विकास कार्यों  के साथ  जाति प्रथा,छुआछूत उन्मूलन पर भी विशेष जोर दिए। इन सबके बावजूद बेटी हों या बेटा सबके लिए  शिक्षा उनकी प्राथमिकताओं में से एक थी। उन्होंने रोजगार प्रदान करने के लिए  शाहू जी महाराज  छत्रपति बुनाई और स्पिनिंग मिल्स के साथ कई मिलों की स्थापना किए। उन्हें समुदाय के सामाजिक  संगठनों के लिए बोर्डिंग स्कूल की स्थापना की। जहां पिछड़ी जातियों की गरीब मेधावी छात्रों के लिए  छात्रवृत्ति देना अनिवार्य कर दिया गया  वहीं पर  छात्रों के लिए अपने राज्य में सभी के लिए  शिक्षा को अनिवार्य कर दिया।

शाहू जी महाराज को निचली जातियों के लिए बहुत कुछ करने का श्रेय दिया जाता है। वास्तव में  आज  शोषित व दलित समाज इसका  मूल्यांकन भी करता है। छत्र पति शाहू  जी  महाराज  पहले  ऐसे   समाज सुधारक थे, जिन्होंने शिक्षा के साथ  छात्रों के लिए उपयुक्त रोजगार भी सुनिश्चित  करने का कानून अपने राज्य में स्थापित किए जो एक ऐतिहासिक कदम माना जाता है।

इसलिए महाराष्ट्र  के इतिहास में कोल्हापुर रियासत के महाराज को वास्तविक लोकतांत्रिक और समाज सुधारक माना जाता था।

सामाजिक क्रांति के प्रणेता-कोल्हापुर राज्य से अस्पृश्यता का नामों निशान मिटाने का संकल्प लेकर 15 जनवरी 1919 को  छुआ- छूत खत्म करने के लिए उन्होंने एक आदेश जारी किया कि यदि किसी सरकारी संस्था में अछूत वर्ग के साथ अस्पृश्यता और असमानता का व्यवहार किया गया और उनके मान सम्मान  और गरिमा पर  ठेस पहुंचाया जाता है तो ऐसे अधिकारी व कर्मचारी को 6सप्ताह के अंदर स्तीफा देना ही होगा।

1919 में शाहू  जी ने  यह भी आदेश जारी किया कि अछूत समाज का कोई भी व्यक्ति सरकारी अस्पताल आकर सम्मान पूर्वक इलाज करा सकते हैं।

आरक्षण के जनक-

शाहू जी महाराज ने न्याय एवं समता की स्थापना के लिए जो कदम उठाए थे वह दशकों बाद भी आजाद भारत की सरकारें  नहीं उठा पाईं।  उनका सपना आज भी अधूरा है। आज से करीब 118 वर्ष पूर्व 26जुलाई 1902, में उन्होंने राज काज के सभी क्षेत्रों में उच्च जातियों का एक छत्र वर्चस्व तोड़ने के लिए पिछड़े वर्गों के  लिए 50% आरक्षण लागू किया था।

पिछड़े वर्गों में उन्होंने मराठा, कुर्मी,और अन्य समुदायों के साथ दलितों एवं आदिवासियों को भी शामिल  किया था। इसको और स्पष्ट करने के लिए उन्होंने आदेश पारित करके निर्देश दिया की ब्राह्मण,ठाकुर,प्रभु, शेवाई और पारसी छोड़कर सभी पिछड़ी जाति में आते हैं। 26 जनवरी ,1950में एस सी/एस टी को तो आरक्षण मिल गया लेकिन ओबीसी को बहुत बाद  करीब 45 साल में मिला।

विधवा पुनर्विवाह और बाल विवाह-

शाहू जी महाराज के शासन के दौरान  “बाल विवाह” पर ईमानदारी से प्रतिबंध लगाया गया ।  विधवा पुनर्विवाह और अंतर्जातीय विवाह के समर्थन में 1917 में कानून बनाया गया  हला इस निर्णय से साहू जी महाराज को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।

बलूतदारी और वतनधारी प्रथाओं का अंत-

पहला 1917 में उन्होंने बलूतदारी प्रथा का अंत किया, जिसके तहत एक अछूत को थोड़ी सी जमीन देखकर उसके बदले में उससे और उसके परिवार वालों से पूरे गांव के लिए मुफ्त सेवाएं ली जाती थी। ठीक वैसे ही1918 में उन्होंने कानून बनाकर राज्य की एक और पुरानी प्रथा वतनधारी अंत किया तथा भूमि सुधार कर लागू कर महारों को गोस्वामी बनाने का हक दिलाया  जिससे  आर्थिक गुलामी काफी हद तक दूर हो गई ।

शिक्षा और स्वावलंबन-

शाहू जी महराज को यह चिंता रहती थी की बिना शिक्षा के पिछड़े वर्गों का उत्थान हो ही नहीं सकता अतः उन्होंने 1912 में सबको प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य और निःशुल्क  बनाने का निर्णय लिया।जिसके चलते 1917-1918 तक निःशुल्क प्राथमिक विद्यालयों की संख्या दो गुनी हो गई।यह निर्णय ब्राह्मणों और गैर ब्राह्मणों के अनुपात में निर्णायक प्रवर्तन ला दिया।

उनका जोर शिक्षा  और रोजगार पर था। उन्होंने अपने विषयों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई शैक्षणिक कार्यक्रम के विभिन्न जातियों और धर्मों जैसे पंचल, देवदान, नाभिक, सिंपी और शंभर समुदायों के साथ-साथ मुसलमानों और ईसाइयों के लिए अलग छात्रावास स्थापित किए ।

इन्होंने समुदाय के  कई सामाजिक  संगठनों के लिए बोर्डिंग स्कूल की स्थापना की,जिसमें पिछड़ी जातियों की गरीब मेधावी छात्रों  और छात्राओं के लिए  अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का संकल्प पूरा हो सके ।

बंधुआ मजदूरी का अंत-

जिस ज्वलंत मुद्दा बंधुआ मजदूरी प्रथा को  राष्ट्रीय स्तर पर भारत सरकार 1975 में समाप्त कर पाई, उस प्रथा को शाहू जी महराज ने 3 मई 1920 के आदेश से कोल्हापुर राज्य में खत्म कर दिया। इसके पहले 1919में महारों के दास श्रमिक के रूप में मजदूरी कराने की प्रथा को समाप्त कर दिया था।

इन सब के अलावा मनुवादी विचारों और मनु संहिता को उलटते हुए अंतर्जातीय विवाह की अनुमति प्रदान करने के लिए भी कानून पारित कराया।

भारत के संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के मददगार-

भारतीय संविधान के निर्माण में महत्व पूर्ण भूमिका निभाने वाले डॉ. भीमराव आंबेडकर को उच्च शिक्षा के लिए  बिलायत भेजने में महत्व पूर्ण भूमिका रही।अगर छत्र पति शाहू जी महाराज का योगदान न रहा होता तो शायद बाबा साहब डॉ.आंबेडकर को वह ऊंचाई नहीं मिल पाती, जिसके लिए वे योग्य थे। जब महाराजा को बाबा साहब की तीक्ष्ण बुद्धि के बारे में पता चला तो वे खुद पता लगाकर  मुंबई की सीमेंट परेल चाल में उनसे मिलने गए,ताकि उन्हें  आवश्यकतानुसार कोई भी सहायता दी का सके।

मूक नायक समाचार पत्र के प्रकाशन में भी बाबा साहब को बहुत सहयोग मिला,जिससे सबको बोलने,सबको समझने और सबको जीने के अधिकार की सूचनाएं मिल सकें।

समता मूलक समाज की स्थापना और भारत को कई टुकड़े होने से बचाने के लिए एक राजा होते हुए भी दलितों के उत्थान की लड़ाई लड़ने वाले छत्रपति शाहू जी महाराज का भारत सदैव ऋणी रहेगा।

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