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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 18 Jun 11:53 AM |   536 views

अधिक लाभ के लिए उन्नत तकनीक से उगाए अरहर

अरहर देवरिया जनपद के पहचान हुआ करती थी मगर आज किसानों के अरहर बुवाई में कम रुचि तथा घड़रोज जैसे जानवरो के प्रकोप के कारण जनपद में अरहर का रकबा लगातार कम होता जा रहा है जबकि अरहर की फसल कम लागत में अच्छा मुनाफा देती हैं। साथ ही अरहर की फसल उगाने से मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है इसकी जड़ों में उपस्थित राइजोबियम जीवाणु वातावरण से मृदा में नत्रजन का स्थिरीकरण करते हैं एवं पत्तियां झड़ कर मिट्टी में मिल जाती हैं खाद  का काम करती हैं।
 
अरहर की खेती पर चर्चा करते हुए कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी वैज्ञानिक रजनीश श्रीवास्तव ने बताया कि अरहर की खेती में अच्छी प्रजातियों का चयन एवं उन्नत तरीके से उगाने से ना केवल पैदावार बढ़ेगी बल्कि अच्छी गुणवत्ता भी होगी। कम दिन में अरहर की पैदावार लेने के लिए 125 से 140 दिन में पकने वाली प्रजातियां जैसे उपास 120, पूसा 992, पूसा 2000, एवम पूसा 2002 का चयन करना चाहिए वहीं  210 से 250 दिनों मैं तैयार होने वाली प्रजातियों में मालवीय चमत्कार, नरेंद्र आरहर 1, नरेंद्र आरहर 2, राजेंद् अरहर 1 का चयन करना चाहिए।
 
बुवाई करते समय ध्यान रखना चाहिए की कम दिन वाली फसल को जून के  द्वितीय सप्ताह तक तथा लंबी अवधि वाली किस्मों की बुवाई मानसून आने के साथ जुलाई के प्रथम पखवाड़े  तक अवश्य कर दें। 
 
अरहर की बुवाई मेंड बनाकर करने से अच्छा उत्पादन होता है। अरहर को लाइन से ही बोए। अरहर के साथ मक्का, हल्दी, उड़द, मूंग, बाजरा की अतःफसल भी ली जा सकती है। अतः फसल के लिए एक लाइन अरहर एक लाइन मक्का , हल्दी, बाजरा या मूंग लगाएं। लाइन की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 15 से 25 सेंटीमीटर रखी जानी चाहिए।  अच्छी उपज के लिए प्रति हेक्टेयर 8 से 10 टन गोबर की खाद मिलाकर खेत की अच्छी तरह से जुताई कर देना चाहिए। रसायनिक उर्वरकों के लिए प्रति हेक्टेयर 20 से 25 किलोग्राम नाइट्रोजन 60 से 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश  तथा 25 किलोग्राम सल्फर का प्रयोग करना चाहिए।
 
उकठा बीमारी से बचने के लिए बीज की बुवाई करते समय 8 से 10 ग्राम ट्राइकोडरमा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। प्रयोगों में यह पाया गया है कि अरहर में दाना बनते समय यदि बरसात नहीं हो तो एक सिंचाई करने से उत्पादन अच्छा प्राप्त होता है।फली बनते समय अरहर में फली बेधक कीट का प्रकोप होता है जिसके नियंत्रण के लिए फूल आने के समय कीटनाशक का छिड़काव करना चाहिए।
 
कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी ने बताया के केंद्र पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत दलहनी फसलों के सीड हब का कार्यक्रम चल रहा है जिसके अंतर्गत किसानों के प्रक्षेत्र पर दलहनी फसलों के बीज उत्पादित कराए जाते हैं। उत्पादित बीज को केंद्र अच्छी प्रजातियों का चयन एवं उन्नत खेती से बढ़ सकती है अरहर की पैदावार अरहर देवरिया जनपद के पहचान हुआ करते थे मगर आज किसानों के अरहर बुवाई में कम रुचि तथा घड़रोज जैसे जानवरों के प्रकोप के कारण जनपद में अरहर का रकबा लगातार कम होता जा रहा है जबकि अरहर की फसल कम लागत में अच्छा मुनाफा देती हैं। साथ ही अरहर की फसल उगाने से मृदा की उर्वरा शक्ति में वृद्धि होती है इसकी जड़ों में उपस्थित राइजोबियम जीवाणु वातावरण से मृदा में नत्रजन का स्थिरीकरण करते हैं एवं पत्तियां झड़ कर मिट्टी में मिल जाती हैं खाद  का काम करती हैं।
 
बुवाई करते समय ध्यान रखना चाहिए की कम दिन वाली फसल को जून के प्रथम से द्वितीय सप्ताह तक अवश्य दें तथा लंबी अवधि वाली किस्मों की बुवाई मानसून आने के साथ जुलाई के प्रथम पखवाड़े  तक अवश्य कर दें। 
 
कृषि विज्ञान केंद्र के प्रभारी ने बताया के केंद्र पर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत दलहनी फसलों के सीड हब का कार्यक्रम चल रहा है जिसके अंतर्गत किसानों के प्रक्षेत्र पर दलहनी फसलों के बीज उत्पादित कराए जाते हैं। उत्पादित बीज को केंद्र द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ 10 से 20 प्रतिशत प्रोत्साहन राशि के साथ क्रय की जाएगी। जो भी किसान बीज उत्पादन कार्यक्रम से जुड़ना चाहते हैं वह कृषि विज्ञान केंद मल्हना भाटपार रानी से  संपर्क कर सकतें हैं ।
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