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By : Kripa Shankar | Published Date : 14 Jun 2021 4:51 PM |   565 views

मौसम विज्ञान को चुनौती देती घाघ की कविताएं

ज्येष्ठ और आषाढ़ मास  में आंधी, तूफान और बारिश देखते ही  भारतीय किसानों को   महाकवि घाघ  याद आ  ही जाते हैं।  खेतों की जुताई- बुआई के गुर, वर्षा का पूर्वानुमान,पैदावार , पौधों में  बिमारी और इलाज,खान- पान , आहार- विहार आदि के साथ उनकी ज्योतिष वाणी के  दोहे या मुहावरों  की भी  चर्चा आम जन में शुरू हो जाती है।

आज विज्ञान और सूचना प्रौद्योगिकी युग में  पल- पल की  मौसम  से संबंधित जानकारी टी वी चैनलों  एवं रेडियो से हर समय उपलब्ध  हो रही है, परंतु घाघ की कविताएं दोहे या मुहावरे आज भी  कहीं इनसे भी अधिक सटीक  साबित हो  रहे हैं।

घाघ कवि का व्यक्तिव और संक्षिप्त परिचय-

आधुनिक मौसम की जानकारी देने वाले भविष्य वक्ताओं को चुनौती देती मौसम संबंधी भविष्यवाणियां,बेमिसाल कृषि संबंधी  कहावतों के जनक और सामियिक परिस्थिति  तथा समय की गति पहचानने वाले दूरदर्शी, महाकवि घाघ  का पूरा नाम देवकली दूबे था। इतिहास कार इनका जन्म 1750ई के आस पास मानते हैं। उनके दो पुत्र थे।इनका जन्म स्थान छपरा , बिहार था लेकिन पुत्र वधू से वैचारिक अनबन होने पर अपनी ससुराल उत्तर प्रदेश,  कन्नौज जिले में चौधरी सराय गांव  के निवासी हो गए।

घाघ के अनुभव और कृषि विज्ञान,मौसम विज्ञान तथा  स्वास्थ्य विज्ञान संबंधी प्रभावी जानकारी  को कविताई के द्वारा आम आदमी तक पहुंचाने की कला से सम्राट अकबर उनसे बहुत प्रभावित थे, जिसके फलस्वरूप उपहार में उन्होंने  घाघ कवि को चौधरी की उपाधि से नवाजा और प्रचुर मात्रा में  धनराशि तथा  स्वतंत्र  रूप से रहने के लिए कन्नौज के पास ही उनको सैंकड़ों बीघा भूमि  दे दी।

घाघ ने इस धनराशि और जमीन  से ही   एक गांव बसाया जिसका न रखा   “अकबरा बाद सराय घाघ”।

घाघ का अर्थ-

सामान्यतः कोई व्यक्ति अत्यंत नीति निपुड़ ,चालक एवं  गहरी सूझ बूझ     और पैठ रखने वाला  हो तो, उसे घाघ कहकर यह कह दिया जाता है कि अरे! यह तो बड़ा ही घाघ है। यद्यपि इसी अनुपम वैज्ञानिकता परक व्यक्तित्व से ही उन्हें  घाघ कहा जाने लगा।

घाघ की प्रसिद्धि का कारण-

घाघ जहां  उत्तम खेती,नीति और स्वास्थ्य में लिए विख्यात हैं, वहीं मौसम की उपयुक्त जानकारी भी इनके मुहावरों और दोहों से मिलती है। घाघ कृषि पंडित एवं व्यावहारिक पुरुष थे,जो कहावतों और दोहों के जरिए खेती किसानी में जुताई,बुआई,गुड़ाई और कीट नाशक दवाई के प्रयोग से लेकर आम आदमी के बिमारी और स्वस्थ रहने के लिए भी घरेलू नुक्से – नियम आदि  पर अच्छा शोध पूरक तथ्य सत्यता के साथ समाज को दिया है ।उनका नाम भारत वर्ष के विशेषत: उत्तरी भारत  के कृषकों के जिह्वाग्र पर रहता है। चाहे बैल खरीदना हो या खेत जोतना,बीज बोना हो अथवा फसल काटना,घाघ की कहावतें उनका पथ प्रदर्शन करती हैं। ये कहावतें मौखिक रूप में पूरे भारत में प्रचलित हैं।

यहीं वजह है कि  वर्षा आने से पूर्व और अनाज घर में आने के बाद तक खेती किसानी से जुड़े किसान और उद्यमी घाघ के अनुभव और मुहावरों का अनुसरण करने से नहीं चूकते। कुछ दोहे व मुहावरों से घाघ की अनूठी मिसाल को प्रस्तुत किया जा रहा है।

सूखे की भविष्य वाणी:-

दिन का बद्दर रात निबद्दर
बहै पुरवइया भव्बर भव्बर
घाघ कहैं कुछ होनी होई,
कुआं के पानी से धोबी धोई

दिन में गर्मी रात में ओस,
कहें घाघ बरखा सौ कोस

सावन पुरवाई चले,भादौ में पछियांव
कंत डगरवा बेच के,लरिका जाइ जियाव

वर्षा के संबंध में:-

रोहनी बरसे मृग तपे
माघ पूस जो दक्खिन चले
तो सावन के लच्छन भले

सर्व तपै जो रोहिनी,सर्व तपै जो मूर
परिवा तपै जो जेठ की,उपजै सातो तूर

शुक्रवार की बादरी,रही सनीचर छाय
तो यों भाखै घाघरी ,बिन बरसे नहिं जाय

भादों की छठ चांदनी जो अनुराधा होय
ऊबड़ खाबड़ बोयदे ,अन्न घनेरा होय

सोम, सुक्र, सुरगुर दिवस, पौष अमावस
होय
घर घर बजे बधावनो,दुखी न दिखै कोय

जेठ मास जो तपै निरासा
तो जानो बरखा की आसा

खेत में खाद और दवा-

खाद पड़े तो खेत,नहीं तो कूड़ा रेत

गोबर राखी पाती सड़ै , फिर खेत में दाना पड़ै

सन के डंठल खेत छितावै, तिनते लाभ चौगुने पावै

वहीं किसानी में है पूरा,जो छोड़ैं हड्डी का चूरा

स्वास्थ्य के संबंध में-

ज्यादा खाए जल्द मरि जाय,
सुखी रहे जो थोड़ा खाय
रहे निरोगी जो कम खाए
बिगरे काम न जो गम खाए

चैते गुड़ बैसाखे तेल
जेठ में पंथ आषाढ़ में बैल

सावन साग न भादों दही,
क्वारे दूध न कातिक मही।( मही-मट्ठा)

मगह न जारा, पूष घना
माघै मिश्री फागुन चना

जाको मारा चाहिए, बिन मारे बिन घाव
वाको यहीं बताइए, घुइयां पूरी खाव
(घुइयां- अरबी)

पहिले जागै पहिले सोवै
जो वह सोचे वही होवै

प्रातः काल खटिया से उठि के पिए तुरंते पानी
वाके घर मा वैद ना आवे बात घाघ की जानी

कवि एवं साहित्यकार अपनी रचनाओं से  केवल मनोरंजन  ही नहीं करते और  न  ही हंसाते हैं ,बल्कि देश के किसानों, श्रमिकों , सीमा प्रहरी देश के जवानों तथा आम जन मानस  को जागरूक भी करते रहते हैं,यह बात सिद्ध करके दिखा दिया जन कवि घाघ ने।

वे जानते थे की कला, मनोरंजन ,प्रकृति चित्रण और दरबारी कविताई से ही समाज में गतिशीलता नहीं आयेगी, बल्कि  कृषि प्रधान देश भारत में खेती किसानी और आम जन की स्वास्थ्य सुविधाओं को ध्यानगत रखकर  उनके पास ही उपलब्ध ज्ञान और संसाधनों  से ही हरित क्रांति और श्वेत क्रांति की गंगा बहेगी ।

ऐसे जनकवियों,लेखकों,कलाकारों  की सृजनात्मक उपलब्धियों ,रचनाओं अथवा कलाकृतियों को ,उनके संस्मरण ,लिखित या अलिखित साहित्य  की पांडुलिपियों को संकलित कर पुनः प्रकाशित कर संरक्षित और समृद्ध करने की नितांत आवश्यक है।

 

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