बुद्धि और विवेक
यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा
शास्त्रम् तस्य करोति किं
लोचनाभ्याम विहिनस्य,
दर्पण: किं करिश्यति
अर्थात:- जिस मनुष्य के पास विवेक नहीं है शास्त्र उसका क्या करेंगे जैसे कि चक्षु विहीन व्यक्ति के लिए दर्पण क्या करेगा |
सैकड़ों वर्ष पहिले काशी राज दरबार में सभी मंत्री ,महामंत्री, पंडित, राज पुरोहित,राज गुरु आदि महाराज काशी नरेश को युवा राजकुमार को गुरुकुल भेजने का प्रस्ताव रखा।शांत स्वभाव में राज सिंहासन पर बैठे महाराज ने कहा मंत्रिवर हमारे राजकुमार जी में आप लोग क्या कमी देख या सुन रहे हैं,प्रजा को कोई कभी कुछ शिकायतें हैं क्या?गुण ,बल और बुद्धि की कहीं कमी है या मंत्रिपरिषद के माध्यम से किसी स्वजन को पीड़ा राज कुमार के द्वारा पहुंचाई गई है कभी |
काशी नरेश का सम्मान करते हुए हाथ जोड़कर विनम्रता से सबने कहा राजन कमी तो नहीं है लेकिन शास्त्र सम्मत गुरुकुल भेजना आवश्यक है। काशी राज भी सोचे कि परिवार को तो कोई कमी नहीं लग रही है फिर भी गुरु जनों और विद्वत जनों के सुझावों का सम्मान करते हुए आग्रह कर लेते हैं कि अभी कुछ दिनों तक गुरुकुल नहीं भेजते हैं। सभी राजदरबारी मंत्री , सलाहकार परिषद व गुरु जन मान गए।
समय बीते एक दिन राजकुमार घोड़े पर सवार होकर गंगा किनारे रामनगर घाट के रेती पर घोड़ा बांध दिए ,सबको यह हिदायत देकर की घोड़े के पास कोई नहीं आएगा ,घोड़ा लात मार सकता है।कुछ दूर जाकर राजकुमार पुनः वापस कुछ अन्य लोगों को भी यहीं हिदायत देकर नांव से काशी विश्वनाथ मंदिर व अन्य दर्शनीय स्थलों के लिए चल पड़े।
दो घंटे बाद वापस आकर देखते हैं कि घोड़े के पास दर्जनों की भीड़ में रेती पर गिरा खून से लथपथ एक 8 साल का बच्चा तड़पड़ा रहा है,मगर डर के मारे कोई न तो लड़के को उठा रहा है, न तो घोड़े को कुछ बोल रहा है और न तो राजकुमार की तरफ देखने का साहस कर रहा है।
गुस्से में राजकुमार घोड़ा लिए बोलते हुए की ये बदतमीज बच्चे इतना समझाने पर भी बात नहीं माने, इनका यहीं हाल होना चाहिए और किले की ओर बढ़ गए । लड़का रोते- रोते उसी रेती पर तड़पड़ाता रहा।यह खबर जंगल में आग की तरह फैलते देर नहीं लगी।राजदरबार में काशी नरेश सहित दरबारियों,पंडित, पुरोहितों , राजगुरु और मंत्रियों का इस असंवेदनशीलता तथा राज कुमार के अविवेक से शर्मशार से सिर झुक गया।
धीरे से काशी नरेश सिर झुकाए राज सिंहासन से नीचे उतरे और अपनी भूल का एहसास करते हुए अपने सभी मंत्र मंडलीय सहयोगियों से अपनी भूल और अनुभवी सलाहकारों की राय न मानने की क्षमा मांगते हुए राजकुमार की असंवेदनशीलता और प्रजा जन के दुःख को स्वीकारते हुए विवेक को बुद्धि से सर्वोपरि माना तथा गुरुकुल में एक साल तक रहने के सुझाव को राजकुल के लिए आवश्यक समझा।
कथा कितनी भी पुरानी हो चुकी हो,परंतु इस कंप्यूटर युग में दुनिया का विकास बुद्धि से ही नहीं बल्कि विवेक से ही हो पाएगा। आज जितने भी आपसी द्वेष विद्वेष और क्लेश बढ़ रहे हैं ,विवेक की कमी से । अपने आप सभी बुद्धिमान हैं परंतु विवेक न होने से सामाजिक ताने बाने, संस्कार ,संस्कृति, रीति- रिवाज साथ में एकता के तार भी बेतार हो जाते हैं।
आज हम जितना भी अपनी कद अथवा पद बढ़ाएं, बल बढ़ाएं,धन बढ़ाएं लेकिन विपत्ति के असली साथी विद्या,विनम्रता,और विवेक ही है। विवेक से ही व्यक्ति साहसी यशस्वी सत्यव्रती , संयमी और धैर्यवान बन सकता है।
कहते हैं न कि अगर व्यक्ति का सब कुछ मर जाय मगर विवेक जिंदा है तो दुनिया में मर कर भी वह जिंदा रहता है।
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