भोजपुरी भाषा को संवैधानिक मान्यता अबिलम्ब मिलना चाहिये-नीलेश रोनील कुमार
वाराणसी -विश्व भोजपुरी सम्मलेन बनारस में देश भर से जुटे भोजपुरिया आज पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार विश्व भोजपुरी सम्मेलन का आगाज दीप प्रज्वलित कर फिजी के भारत में राजदूत नीलेश रोनील कुमार, कुलपति महात्मा गांधी विद्यापीठ वाराणसी टी एन सिंह,बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे एवं विश्व भोजपुरी सम्मेलन के राष्ट्रीय महामंत्री डॉ. अशोक सिंह ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया ।
इस अवसर पर अपने संबोधन में महामहिम नीलेश रोनील कुमार जी ने भोजपुरी को अब तक भारत में संवैधानिक मान्यता नहीं देने के फैसले पर चिंता प्रकट करते हुए अविलंब भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता देने की वकालत की |
उन्होंने कहा कि फिजी में भी भारत से कुल 60513 लोग 1897 में अंग्रेजों के गुलाम बनकर गिरमिटिया मजदूर के रूप में गए थे, भारत से वह याद के तौर पर रामायण, रामचरितमानस और संस्कार अपनी माटी की महक लेकर के गए थे|
जो आज भी हम लोग के खून में हमारे संस्कार में फिजी हिंदी भाषा में भोजपुरी झलकता है। फिजी के राजदूत ने कहा कि हम इस सम्मेलन में आकर हम अपने आपको धन्य समझ रहे हैं ऐसा महसूस होता है कि हम अपने घर और परिवार के बीच में आए हैं यह वर्षों पुरानी हमारे पूर्वजों की थाती आज हमारे दिल में यहां आने के बाद महसूस हुई है।
दूसरे सत्र में ‘गिरमिटिया मजदूर एक इतिहास’ एवं “भोजपुरी लोक संस्कृति कल और आज” पर एक परिचर्चा का आयोजन अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री डॉ गुरु चरण सिंह की अध्यक्षता में हुई जिसमें साहित्यकार एवं मुजफ्फरपुर लंगट सिंह महाविद्यालय के डॉ जय कांत सिंह ‘जय’, चंद्रकांत सिंह, प्रदीप सिंह भोजपुरिया, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय के चितरंजन सिंह, रमेश कुमार, अरविंद कुमार, अजय त्रिपाठी धनबाद के विधायक राज सिन्हा, डॉक्टर अजय ओझा ने अपने विचार रखे।
अन्य पुस्तकों के अलावा कवि राम नरेश नरेश की दो भोजपुरी काव्य संग्रह पुरवाई और अमराई का भी मुख्य अतिथि के हाथों से लोकार्पण किया गया।
तीसरे चरण में सांस्कृतिक कार्यक्रम देर रात तक चलता रहा ,जिसमें गायिका नीतू कुमारी नूतन, लोक गायिका व नायिका प्रतिभा सिंह, व्यास मौर्या, दीपक दीवाना, अजय अजनबी, युवा संगीतकार अप्रतिम त्रिपाठी, प्रसिद्ध गीतकार व भोजपुरी कवि वाराणसी के राम नरेश नरेश, रोहित दुबे, राकेश तिवारी इत्यादि कलाकारों ने देर रात तक अपना समा बांधा एवं लोगों ने अपने लोक संस्कृति का आनंद उठाया।