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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 2 Oct 2020 3:29 PM |   329 views

महात्मा गांधी

यह कहना कितना यथार्थ है कि ” साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल | वास्तव में इसका मूल स्रोत महात्मा गांधी की सर्वोत्मुखी प्रतिभा थी |गांधी जी आजीवन ‘ परहित सरिस धरम नाहि भाई ‘ को अंगीकार कर मानवता की रक्षा के लिए प्रयास करते रहे |अफ्रीका की यात्रा को भला कौन भूल सकता है ? उन्होंने उपवास और असहयोग आंदोलनों को हथियार बनाकर उन अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर विवश किया , जिनके शासन का सूर्य कभी डूबता ही नही था |

महात्मा गांधी का मानवीय दृष्टिकोण एक मंत्र सा था |एक बार जब वह यरवदा जेल में थे तो उन्हें राजनैतिक बंदी के नाते एक हब्शी सेवक दिया गया | वह गांधी जी की बात नही समझ पाता था |उसे अपनी भाषा के अतिरिक्त किसी अन्य भाषा का कोई ज्ञान नही था |गांधी जी अपने प्रेम और मानव मन्त्र का प्रयोग कर उससे अपना जरुरी काम संपन्न करने में सहयोग लेते रहते थे |एक दिन उसे बिच्छू ने डंक मारा | वह हाथ पकडे गांधी जी के पास दौड़ता हुआ आया | उसे देखकर महात्मा को समझते देर नही लगी , उन्होंने उसकी ऊँगली में चीरा लगाया और अपना लगाकर उसका विष खीच लिया | उसे आराम मिला और वह गांधी जी का सेवक नही भक्त बन गया |

गांधी जी स्वच्छता के प्रति न केवल स्वयं जागरूक थे अपितु सभी को इसके लिए प्रेरणा देते रहते थे |  एक बार सन 1930 में वह जल मार्ग से वाराणसी पहुचे थे |वह दो दिन का विश्राम था |वहां वह दर्शन हेतु विश्वनाथ मंदिर गये |वहां मंदिर से निकल रही गंध के कारण वहा के मुख्य पुजारी को बुलाये तथा मंदिर में साफ़ -सफाई की ओर उनका ध्यान आकृष्ट किया |उन्होंने स्वयम मंदिर के भीतर और फाटक पर लगी गंदगी को अपने अंगोछे के कोने से साफ़ किया |पुजारी जी के आग्रह और आश्वासन पर मान तो गये किन्तु उन्होंने पुजारी जी से कहा कि ‘ मै पुनः बाबा के दर्शन हेतु आऊंगा और यह की साफ़ -सफाई देखूंगा |

पाठक इस बात से अवगत होंगे कि गांधी जी एक गरीब महिला के फटे वस्त्र देखकर रो पड़े थे और अपना कौपीन उस बूढी माता को दे दिए थे |सिद्धांतो के धनी थे , वह उपदेश उसी बात का देते थे ,जिस पर वह स्वयं आचरण करते थे | गुड वाली कहानी इसी का उदहारण है |

1987 – 88 में मै वर्धा आश्रम गया था | वहां उनकी दिनचर्या की बातें बतायी जातीं थी |वहां देश – विदेश के पर्यटक आतें हैं और गांधी जी जीवन की बातें सुनकर मन्त्र -मुग्ध हो जातें है |सबके मुख से यही बात सुनने को मिलती है कि वह साधारण मानव नही थे | 

  ( कैप्टन वीरेंद्र सिंह , वरिष्ठ पत्रकार ) 

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