नौकर की बात
लखन व मदन दो भाई थे। साथ में विधवा मां थी जो घर घर झाड़ू पोंछा कर के दोनों का पालन पोषण कर रही थी। लखन बड़ा था और पढना चाहता था लेकिन गरीबी के कारण पढ़ नहीं सका। फिर उसने मजदूरी का काम करने लगा और अपने छोटे भाई मदन को पढ़ाना शुरू कर दिया।
मदन पढ़ लिख कर बैंक में अधिकारी हो गया।मदन की नौकरी लगने पर लखन इतना प्रसन्न था जैसे उसी की नौकरी लग गई हो। एक दिन उसकी मां ने लखन से कहा कि”बेटा अब तुम्हारी शादी हो जाय तो उसके मदन की भी शादी हो जाय।मेरा क्या ठिकाना कब तक। लखन ने अपनी शादी से इन्कार कर दिया और मदन की शादी बड़े धूम-धाम से किया।
शादी के दो चार महीने बाद मदन ने अपनी मां से कहा कि” अकेले खाना बनाने और नौकरी करने में दिक्कत हो रही है।कहो तो तुम्हारी बहू को भी लेता जाऊं।” मां ने हामी भर दी और मदन अपनी पत्नी को लेकर अपनी नौकरी पर चला गया।घर पर केवल उसकी मां और लखन रह गए। लखन अपनी मजदूरी करने करने के साथ साथ मां की सेवा पूरे लगन के साथ करता था।
लगभग छः माह बीत गए लेकिन मदन ने अपनी मां और अपने भाई की कोई खोज खबर नहीं लिया। एक दिन उसकी मां ने लखन से कहा कि” बेटा,मदन का कोई समाचार नहीं मिल रहा है पता नहीं वहां वह किस हाल में है।”अपनी मां की बात सुनकर लखन दूसरे दिन अपनी मजदूरी का काम निपटा कर मदन से मिलने चल दिया।
बैंक के बगल में ही मदन का क्वाटर था । लखन पहुंच कर देखा कि एक बैंक का सिपाही बाहर खड़ा है बंदूक लिए। उस सिपाही से लखन ने मदन के विषय में पूछा। सिपाही ने बताया कि “अभी अभी तो साहब बैंक से आए हैं चाय पानी कर रहे होंगे”।
खिड़की से मदन की पत्नी ने लखन को देखते ही मदन से बोली ” सुनो, तुम्हारे भैया आए हैं। लगता है कि कुछ पैसे वैसे की जरूरत होगी। तुम बाहर मत जाओ मैं नौकर से कहलवा देती हूं कि नहीं हैं।”मदन में बीबी की बात काटने की हिम्मत नहीं थी।
नौकर बाहर आकर पूछा “क्या बात है।” लखन के मुंह से सिर्फ मदन कहते ही नौकर ने कहा कि “साहब घर पर नहीं हैं।”इतना सुनते ही लखन पर जैसे बज्रपात हो गया और वह चुपचाप अपने घर वापस आ गया।घर आकर मां से मदन की तारीफ करते हुए कहा कि “वो दोनों बहुत मजे में हैं।
कुछ दिन बाद मदन की पत्नी की तबियत अचानक बिगड़ गई और खून की कमी हो गई। उसके ग्रुप का कहीं मिल नहीं रहा था। मदन बहुत परेशान था तब तक उसे याद आया कि यही ब्लड ग्रुप तो मेरे भैया का भी है।मदन तुरंत घर आया और दरवाजा खटखटाया। लखन बाहर आकर बड़े इत्मीनान से पूछा कि “क्या बात है,किससे मिलना है।
मदन ने कहा कि “अरे,भैया—।
मदन की बात बीच में काटते हुए लखन ने कहा कि “लखन घर पर नहीं हैं।”
मदन आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि “क्या बात कर रहे हो भैया, सामने खड़े हो और—-।
लखन ने मदन की बात बीच में काटते हुए कहा कि “विचित्र आदमी हो तुम। मैंने तुम्हारे नौकर की बात पर विश्वास कर लिया और तुमको मेरी बात पर विश्वास नहीं हो रहा है।
( डॉ भोला प्रसाद आग्नेय , बलिया )
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