बचपन
तथा कहानी अपनेपन की
रहती थी कितनी आज़ादी
होवे चाहे जो बर्बादी
मुझे बचा लें दादा- दादी
कहें हमें गुलाब उपवन की
क्या बात करूं मैं बचपन की ?
आज की चिंता थी ना कल की
श्याम की चिंता ना उज्ज्वल की
खुशी चाहिए इक-इक पल की
अदा अजब मेरे चितवन की
क्या बात करूं मैं बचपन की ?
खाना-पीना मस्ती करना
ना किसी से कभी भी डरना
बात- बात में हंसते रहना
ना फिक्र किसी से अनबन की
क्या बात करूं मैं बचपन की ?
महज हंसना और हंसाना
तुतली बोली में तुतलाना
रोटी फेंक कर मिट्टी खाना
सुधि नहीं थी तन -मन की
क्या बात करूं मैं बचपन की ?
काश, कभी ऐसा हो जाता
वापस बचपन फिर से आता
बुढ़ापे में भी रंग जमाता,
स्वर्णिम कीमत इस जीवन की
क्या बात करूं मैं बचपन की ?
–डाॅ0 भोला प्रसाद आग्नेय
रघुनाथपुरी, टैगोर नगर, सिविल लाइंस, बलिया
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