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By : Nishpaksh Pratinidhi | Published Date : 27 Apr 2020 4:04 PM |   330 views

Covid- 19 का चीनी कनेक्शन

कोविड -19पर चीन की भूमिका और स्थिति के बारे में विशेषज्ञों की राय अलग-अलग हैं । आगे के अनुसंधान और रहस्योद्घाटनों के साथ हम सच के करीब पहुंचेंगे। नॉवेल कोरोना अब तक मानव अस्तित्व के लिए सबसे जटिल चुनौती है । चीन के खिलाफ दुनिया काफी उग्र हो रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस मानव विरोधी मुद्दे के चीनी कनेक्शन के बारे में जांच शुरू करा दी है । यह चीनी सरकार इस विश्व-व्यापी त्रासदी में विश्व समुदाय के साथ सच साझा करने में कहाँ तक  ईमानदार, खुली और जिम्मेदार है, इसकी  जांच करने के लिए है । प्रभावी जांच के लिए ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के कुछ अन्य सहयोगी भी इस पर दबाव डाल रहे हैं।

चाहे Covid-19 प्रकृति ने बनाया हो या आदमी ने, एक बात स्पष्ट है । Covid-19 आगे की कार्रवाई के लिए तात्कालिक कारक होने जा रहा है ।  चीन, उत्तर कोरिया और ऐसे अन्य सरकारों के निरंकुश व्यवस्थाओं को खत्म होने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए । अगर चीनी सत्ताधीश अपने निरंकुश, गैर-पारदर्शी और गैर-जिम्मेदाराना मंसूबों को जारी रखते हैं तो अमेरिका चीन से उसी तरह निपटना चाहेगा जैसे इराक, अफगानिस्तान आदि की निरंकुश व्यवस्थाओं के साथ किया गया था हालांकि यह चीन के साथ इतना आसान नहीं है ।  यदि चीन जानबूझकर चाहे अपनी प्रयोगशाला या बाजार में इस वायरस का निर्माता साबित होता है, जानकारी छुपाने और निरंकुश व्यवहार की आदत के चलते चीन जल्दी या बाद में अपने काल को आमंत्रित कर रहा है ।

दुनिया के अधिकांश लोग इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ है । लेकिन रूस का समर्थन सुनिश्चित किए बिना यह संघर्ष बहुत जटिल और चुनौतीपूर्ण होगा । दरअसल, महाशक्ति की स्थिति के लिए अमेरिका और रूस एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं । वर्चस्व के इस खेल में चीन भी प्रवेश कर चुका है। रूस यहां अपना महत्वपूर्ण मूल्य जानता है । इस चुनौती से निपटने के लिए तीन विकल्प उपलब्ध हैं| 

पहला विकल्प है, क्यों नहीं संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) के माध्यम से चीन से निपटें? तब संयुक्त राज्य अमेरिका अपने स्वयं के राष्ट्रीय कानूनों के माध्यम से स्वयंभू विश्व पुलिस के रूप में काम करने के लिए आलोचना का पत्र नहीं बनेगा–एक लंबे समय तक लगने वाला धब्बा जो उस पर लेबल होने जा रहा है, भले ही वह विजयी हो । लेकिन यूएनओ की कमजोर स्थिति के कारण यह विकल्प व्यवहारिक नहीं है। अगर डब्ल्यूएचओ चीन के प्रभाव में खेल सकता है और उसका सहयोगी है, तो UNO क्यों नहीं !

दूसरा विकल्प है,  संयुक्त राज्य अमेरिका अपने स्वार्थी पूंजीवादी तौर-तरीके समाजवाद दिशा में बदले और अधिक समाजवादी यूरोप  से बेहतर प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने के लिए। इस बदली स्थिति के साथ और अधिक विश्वास के साथ रूसी समर्थन हासिल करने  की कोशिश कर सकते हैं । भारत इस प्रक्रिया का समर्थन कर सकता है। दोनों को विश्व बिरादरी के साथ जाना चाहिए।

दूसरे विकल्प के साथ ही, भारत और व्यापक विश्व समुदाय वास्तव में लोकतांत्रिक, सार्वभौमिक, संघीय, विज्ञान और न्याय उन्मुख विश्व सरकार के साथ समतावादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने की कोशिश कर सकते हैं । पूंजीवाद और साम्यवाद निरंकुश राजनीतिक-आर्थिक सत्ता पर काबिज होने और भोगने के लिए लोकतंत्र विरोधी रचनाएँ  हैं । भारत को पूंजीवाद और पिट्ठू पूंजीवाद के अपने तरीकों को भी ठीक करना होगा ।  अब तक जो वैश्विक व्यवस्था चल रही है, वह अप्रासंगिक होती जा रही है। डब्ल्यूएचओ, आईएमएफ, विश्व बैंक और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संघ भी इस चल रहे पूंजीवादी व्यवस्था में काफी कमजोर साबित हुए हैं। प्रगतिशील समाजवाद या प्रगतिशील उपयोग तत्व (PROUT– प्रउत) विचारधारा के तहत विश्व सरकार का एक पूर्ण नैतिक मॉडल प्रस्तावित किया गया है । चूंकि प्रगतिशील समाजवाद शब्द का चालाक राजनीतिकों द्वारा मनमाना  उपयोग किया जा रहा है, इसलिए ‘प्रउत’ शब्द को अब को विचारधारा के रूप में इस्तेमाल करना बेहतर है। प्रउत पर आधारित विज्ञान और प्रौद्योगिकी उन्मुख लोकतंत्र की आज बहुत जरूरत है ।

प्रो ग्लेन टी मार्टिन के नेतृत्व में विश्व संविधान और संसद संघ (WCPA) ने ऐसे किसी भी विश्व महासंघ या सरकार के लिए ठोस रेडी दस्तावेज उपलब्ध कराने के लिए विश्व कानून और संविधान पर काफी काम किया है । यह विश्व महासंघ या सरकार इस ब्रह्मांड में सभी के अस्तित्व, विकास और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए अपनी घटक इकाइयों के व्यवहार को विनियमित करेगी ।  मेरी समझ से विश्व समुदाय और भारत के लिए आज के समय में यही सर्वोत्तम पथ है।

( प्रोफेसर आर . पी. सिंह )  

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