समता मूलक समाज की संकल्पना बिना शिक्षा के संभव नही
शिक्षा मात्र शिक्षित करने का कार्य नही करती है बल्कि यह हमे सुसंस्कृत बनाने के साथ -साथ हमारी संवेदनशीलता और दृष्टि को भी प्रखर बनाती है |देश की ग्रामीण और शहरी पृष्ठ को उकेरने का प्रयास करे तो 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करना एक ऐतिहासिक कदम था |इसका उद्देश्य राष्ट्र की प्रगति मे सार्वजानिक बौद्धिकता को शामिल करना था ,जिससे देश को सामाजिक ,राजनैतिक ,वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़ बनाया जा सके |हमारा विशाल भारत देश भले ही आज वैज्ञानिक एवं आर्थिक रूप से प्रगति के उत्कर्ष पर है ,किन्तु सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से विकसित होने की राह अभी पकडे हुए है आज ग्रामीण परिदृश्य पर नजर डालें तो आकड़ों से स्पष्ट नजर आता है कि 90% से अधिक आबादी के लिए हर एक किलोमीटर के फासले पर प्राथमिक विद्यालय उपलब्ध है परन्तु विद्यालय की उलब्धता और शिक्षा की उपलब्धता मे बहुत बड़ा अंतर है | उन प्राथमिक विद्यालयों मे कुछ दहाई के अंको मे छात्रों का होना हमारी सर्व शिक्षा नीति के मुह पर करारा तमाचा है |ग्रामीण क्षेत्रों मे शिक्षा का प्रसार होना सिर्फ की बात बन गई है |इसका एक मुख्य कारण समझ मे आता है कि शिक्षा नीति मे दिए गये सुझावो का कार्यरूप मे परिणत न हो पाना क्योकि इन सुझावों के क्रियान्वयन की पक्की योजना नही बनी , न स्पष्ट दायित्व निर्धारित किए गए और नही वित्तीय एवं संगठन संबंधी ब्यव् स्थाये हो सकी |परिणाम यह हुआ कि सर्वजन शिक्षा उपलब्धता की बात एक यक्ष प्रश्न की भांति दिखाई देने लगी |
आज विभिन्न वर्गों तक शिक्षा पहुचाने का प्रयास असफल सा लगता है लेकिन सरकारों ने देश के लिए ,समाज के लिए कई अहम् कदम उठाएँ हैं |आज देश की सरकारों को पिछड़े शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के सभी वर्गों तक शिक्षा पहुचाने ,उसका स्तर सुधारने ,हर घर तक शिक्षा का विस्तार करने और उचित आर्थिक साधन जुटाने जैसे महत्वपूर्ण कार्य करने होंगे |कई दशको से चली आ रही कमियों का पुनरवलोकन किये जाने की जरूरत है |क्योकि आज इन समस्याओं का हल निकालना पहली जरुरत है |तकनीकी रूप से विकसित हो रहे वैश्विक परिदृश्य मे शिक्षा के मात्र प्रचार -प्रसार की बात करना काफी नही है क्योकि गतिशील प्रक्रिया मे शिक्षा ही है जो एक उत्प्रेरक की भांति कार्य करती है |इसके लिए बहुत सावधानी से योजना बनाने और उस पर पूरी लगन के साथ अमल करने की आवश्यकता है |सामाजिक ,आर्थिक ,सांस्कृतिक ,भाषिक ,एवं जातीय विषमताओ को दूर करके अब तक वंचित रहे लोगो की आवश्यकताओं को ध्यान मे रखते हुए सरकार शिक्षा के समान अवसर मुहैया कराए |कई दशको से चली आ रही विकृतियों और विषमताओ को समाप्त करने के लिए शिक्षा व्यवस्था मे बदलाव आवश्यक है |स्त्री शिक्षा की बाधाओं को प्राथमिक स्तर पर ही दूर करने का प्रयास किया जाय |स्कूल भेजने की अनिवार्यता को सामाजिक पृष्ठभूमि के आधार पर ठोस रूप से लागू किया जाय |उनकी आधारभूत जरुरतो और आवश्कताओं को ध्यान मे रखकर प्रोत्साहन योजना तैयार की जाएँ जिससे उनकी शिक्षा प्राप्ति मे आने वाली बाधाए दूर हो सके |
( डॉ नीता , दिल्ली पब्लिक स्कूल ,आगरा )